अकबर भी जिसके नाम से कापता था, भारत के वीर सपूत महाराणा प्रताप के बारे में यह बातें नहीं जानते होंगे आप

जिसकी तलवार की छनक से
अकबर का दिल घबराता था,
वो अजर अमर वो शूरवीर वो
महाराणा कहलाता था ।
मेवाड़ के राजा और इतिहास के महान योद्धा – महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को उदयपुर के संस्थापक उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के घर हुआ था । प्रताप ऐसे योद्धा थे जो मुग़लों के आगे कभी नहीं झुके । उनका संघर्ष इतिहास में अमर है , लेकिन महाराणा प्रताप के बारे में ऐसे रहस्य है जिनके बारे में आप शायद नहीं जानते होंगे –

महाराणा प्रताप की लम्बाई 7.5 फ़ीट थी। महाराणा प्रताप का भाला 80 किलो और उनकी छाती का कवच 71 किलो का था । उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलकर 208 किलो का था । ये आज भी मेवाड़ राजघराने के म्यूजियम में सुरक्षित है
प्रताप ने मायरा की गुफा में घास की रोटी खा कर दिन गुजारे थे । गुफा आज भी मौजूद है, हल्दीघाटी युद्ध के समय प्रताप ने हथियार छुपाये थे और यहाँ एक मंदिर भी मौजूद है । मेवाड़ अकबर के लिए दिल्ली से महत्वपूर्ण था, गंगा मार्ग के व्यापर मार्ग को ये पश्चिमी तट को ये जोड़ता था । अकबर को कुछ भी बाहर से लाने ले जाने के लिए “मेवाड़” पार करना पड़ता था । अकबर ने महाराणा को लालच भी देने कि कोशिश कि थी कि आधा हिंदुस्तान तुम्हारा होगा अगर वो अकबर का आधिपत्य स्वीकार कर लें लेकिन महाराणा प्रताप नहीं माने और उन्होंने अपनी छोटी से सेना से अकबर के दाँत खट्टे कर दिए थे।
हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर के सेनापति ‘बहलोल खान’ पर ऐसा वार किया की सिर से घोड़े तक के दो टुकड़े हो गए थे ।
महाराणा प्रताप का घोडा ‘चेतक ‘ जब दौड़ता था तो उसके पैर जमीन पे दौड़ते दिखाई ही नहीं पड़ते थे।
हल्दीघाटी के युद्ध में मान सिंह के हाथी के सिर पर उछलकर पैर रख दिया था और प्रताप ने अपने भाले से मानसिंह पर जानलेवा वार किया।
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चेतक एक अरबी घोडा था और जब चेतक लाया गया था तो उसके साथ दो घोड़े और थे । चेतक उनमे से से सबसे ज्यादा फुर्तीला और बुद्धिमान था और प्रताप ने उसकी मुंहमांगी कीमत चुकाई थी । मेवाड़ी सेना के बेहतरीन अश्व प्रशिक्षकों के साथ महाराणा प्रताप ने भी उसे प्रशिक्षित किया था।
जब महाराण प्रताप घायल हुए तो वह २६ फ़ीट लम्बे नाले तक को लांघ गया था । अपने स्वामी की ऐसी रक्षा यह उदाहरण पूरे विश्व में मिसाल बन गयी । चेतक अपने स्वामी की रक्षा करते हुए नाले को फांद तो गया लेकिन नाले को पार करते ही वो घायल हो गया और खोड़ा (लंगड़ा) हो गया और एक इमली के पेड़ के नीचे आकर दोनों रुक गए और उस इमली के पेड़ का नाम ‘खोड़ी इमली’ हो गया । मान्यता है कि ‘खोड़ी इमली” पेड़ का ठूंठ आज भी है।
हल्दीघाटी का युद्ध इतना विनाशकारी था की अकबर सपने में महाराणा प्रताप को देख कर जाग जाया करता था । ३० वर्षो के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर ‘महाराणा प्रताप’ को बंदी न बना सका । अकबर ‘प्रताप’ की बहादुरी का कायल था और ये भी कहा जाता है की महाराणा प्रताप की मौत की खबर सुन कर अकबर के आँखें नम हो गयी थी
महाराणा प्रताप ने अपने वंशजो को वचन दिया था कि जब तक वो चित्तौड़ वापस नहीं ले लेते तब तक वो पुआल पर सोयेंगे और पेड़ के पत्ते खाएंगे। आखिर महाराणा प्रताप को चित्तौड़ वापस नहीं मिला और उनके वचन का मान रखते हुए आज भी कई राजपूत अपने खाने के प्लेट के नीचे एक पत्ता रखते हैं और बिस्तर के नीचे सूखी घास का तिनका रखते हैं |

महाराण प्रताप और अकबर कि सेना के बीच हल्दीघाटी का महायुद्ध 1576 ईस्वी में लड़ा गया । इस युद्ध में महाराणा प्रताप कि सेना में सिर्फ 20 हज़ार सैनिक थे तथा अकबर कि सेना में 85 हज़ार सैनिक थे । अकबर कि विशाल सेना और संसाधनों के ताक़त के बावजूद महाराण प्रताप ने हार नहीं मानी और मातृभूमि के सम्मान के लिए संघर्ष करते रहे

माना जाता है कि हल्द्घाटी के युद्ध में किसी कि विजय नहीं हुई लेकिन अगर देखा जाये तो विजय महाराणा कि हुई थी। बादशाह अकबर की विशाल सेना के सामने प्रताप की मुट्ठी भर सेना थी, लेकिन महारणा के युद्ध कौशल और बेहतरीन रणनीति के कारण अकबर की सेना को पीछे हटने और भागने पे मजबूर कर दिया था। हल्द्घाटी के युद्ध की सबसे बड़ी बात थी की यह युद्ध आमने सामने लड़ा गया था। हल्दीघाटी का युद्ध इतना भयंकर था कि युद्ध के 300 वर्षों बाद आज भी वहां पर तलवारें दिखाई देती हैं ।

महाराणा के जीवन काल के इतिहास में दिवेर का युद्ध एक बहुत महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है क्यूंकि इस युद्ध में जीत के बाद प्रताप ने अपने खोये हुए राज्यों को पुनः प्राप्त किया था।

१५७९ से १५८५ तक पूर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशो में विद्रोह होने लगे थे और इधर महाराणा प्रताप एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे और अकबर अपने विद्रोह को दबाने में पूरी तरह उलझ सा गया था और उसका ध्यान मेवाड़ पर से कम हो गया । इस बात का फायदा पूरी तरह से प्रताप ने उठाया और मुग़ल चौकियों पे हमला करके उदयपुर समेत ३६ महत्वपूर्ण स्थान पर अपना अधिकार कर लिया। महाराणा ने जब सिंघासन लिया उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था वो वापस से उनपर आधिपत्य स्थापित कर लिया था । १२ वर्ष के निरंतर संघर्ष के बाद भी अकबर मेवाड़ राज्य और प्रताप का कुछ नहीं कर पाया।

इतनी लम्बी अवधि के कड़े संघर्ष के बाद मेवाड़ को अकबर से मुक्त रखने में पूरी तरह सफल रहे और यह काल मेवाड़ का स्वर्ण युग साबित हुआ। सन १५८५ ईस्वी में मेवाड़ पर लगा हुआ अकबर की काली छाया का अंत हुआ और उसके बाद महाराणा प्रताप अपने राज्य के सुख सुविधा को जुटाने में लग गए, परन्तु दुर्भाग्य वश उनकी ग्यारह साल बाद 19 जनवरी 1597 अपनी राजधानी चावंड में मृत्यु हो गयी।

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